भगत सिंह का जन्म 27 दिसम्बर, 1907 ई. को लायपुर जिले में हूआ। इनके पिता किशन सिंह अपने चार भाइयों सहित लाहौर सेंट्रल जेल में थे। माँ विद्यावती की धार्मिक भावना का भगत सिंह पर प्रभाव था। इनके परिवार में देशभक्ति कूट-कूटकर भरी थी। उनकी बड़ी बहन का नाम अमरो था। 13 अप्रैल, 1919 ई. की जालियाँवाला बाग की घटना का भगत सिंह पर बड़ा प्रभाव पड़ा। शीशी में बाग की मिट्टी लेकर इन्होंने देश पर बलिदान होने की शपथ ली। नेशनल कॉलेज लाहौर में ये सुखदेव और यशपाल से मिले। तीनों मित्र क्रान्तिकारी गतिविधियों में भाग लेने लगे।
भगत सिंह जब बी.ए. में पढ़ रहे थे, इनके पिता ने इनका विवाह करने की सोची। भगत सिंह ने बताया कि उसने तन, मन और धन से देश सेवा की सौगन्ध खाई है। इस कारण विवाह से इनकार कर दिया। सन् 1926 ई0 में लाहौर में उन्होंने नौजवान सक्षा का गठन किया। इसके उद्देश्य थे – देशभक्ति की भावना जाग्रत करना, देश को स्वतन्त्र करना, आर्थिक, समााजिक और औद्योगिक आन्दोलनों को सहयोग देना तथा किसान, मजदूरों को संगठित करना, इसी बीच ये कानपुर में क्रान्तिकारी व देशभक्त गणेश शंकर विद्यार्थी से मिले और उनके साथ मिलकर क्रान्तिकारी गतिविधियाँ चलाने लगे। भगत सिंह को लाहौर में हिन्दुस्तान रिपब्लिक ऐसोसिएशन का मंत्री बनाया गया। भगतसिंह ने लाहौर में साइमन कमीशन के बहिष्कार की योजना बनाई। अँग्रेजों ने लाठी चार्ज किया। लाला लाजपराय को गम्भीर चोटें आई। भगतसिंह ने पुलिस कमिश्नर साँडर्स की हत्या कर दी और लाहौर से बाहर निकल गए।
अप्रैल 1929 ई. में भगत सिंह और बटुकेश्वर ने असेंबली में बम फेंका और गिरफ्तारी दी। उन्हें लाहौर सेंन्ट्रल जेल में रखा गया। 7 अक्टूबर 1930 ई. को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फाँसी की सजा सुनाई गई। तीनों क्रान्तिकारियों को 23 मार्च 1931 ई. को फाँसी दे दी गई।
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