भारतीय इतिहास के महापुरुषों में शिवाजी का नाम प्रमुख है। वे जीवन भर अपने समकालीन शासकों के अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष करते रहे। इनके पिता का नाम शाहजी और माता का नाम जीजाबाई था। शिवाजी बचपन से ही अपनी माता के परम भक्त थे। दादाजी कोणदेव की देख-रेख में शिवाजी कार्यो में शीघ्र ही निपुण हो गए। जब शिवाजी बीस वर्ष के थे, तभी उनके दादा की मृत्यु हो गई। अब शिवाजी ने आस-पास के किलों पर अधिकार करना आरम्भ कर दिया। बीजापुर के सुल्तान उसे उनका संघर्ष हुआ। शिवाजी ने अनेक किलों को जीता और रायगढ़ को अपनी राजधानी बनाया।
शिवाजी की बढ़ती हुई शक्ति से मुगल बादशाह औरंगजेगब को चिन्ता हुई। अब शिवाजी का दमन करने के लिए औरंगजेब ने आमेर के राजा जयसिंह को भेजा। जब जयसिंह के साथ शिवाजी आगरा पहुुँचे, तब नगर के बाहर उनका कोई स्वागत नहीं किया गया। मुगल दरबार में भी उनको यथोचित सम्मान नहीं मिला। स्वाभिमानी शिवाजी यह अपमान सहन न कर सके, वे मुगल सम्राट की अवहेलना करके दरबार से बाहर निकल गए औरंगजेब ने महल के चारों ओर पहरा बैठाकर उनको कैद कर लिया। वह शिवाजी का वध करने की योजना बना रहा था। इसी समय शिवाजी ने बीमार हो जाने की घोषणा कर दी। वे ब्राह्राणों और साधु सन्तो को मिठाइयों की टोकरियाँ भिजवाने लगे। बहँगी में रखी एक ओर की टोकरी में स्वयं बैठकर वे आगरा नगर से बाहर निकल गए।
शिवाजी बहुत प्रतिभावान और सजग राजनीतिज्ञ थे। उन्हें अपने सैनिकों की क्षमता और देश की भौगोलिक स्थिति का पूर्ण ज्ञान था। इसीलिए उन्होंने दुर्गो के निर्माण और छापामार युद्ध नीति को अपने शक्ति संगठन का आधार बनाया। शिवाजी की ओर से औरंगजेब का मन साफ नहीं था। इसलिए सन्धि के दो वर्ष बाद ही फिर संघर्ष आरम्भ हो गया। शिवाजी ने अपने वे सब किले फिर जीत लिए जिनको जयसिंह ने उनसे छीन लिया था।
सन् 1674 ई. में बड़ी धूम-धाम से उनका राज्याभिषेक हुआ। उसी समय उन्होंने छत्रपति की पदवी धारण की। इस अवसर पर उन्होंने बड़ी उदारता से दीन-दुखियों को दान दिया।
बीजापुर और कनार्टक पर आक्रमण करके समुद्र तट के सारे प्रदेश को अपने अधिकार में कर लिया। शिवाजी ने एक स्वतन्त्र राज्य की स्थापना का महान संकल्प किया था और इसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए वे आजीवन संघर्ष करते रहे। शिवाजी सच्चे अर्थो में एक महान राष्ट्रनिर्माता थे। उन्हीं के पदचिह्न्हों पर चलकर पेशवाओं ने भारत में मराठा शक्ति और प्रभाव का विस्तार कर शिवाजी के स्वप्न को साकार किया।
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